
सिंधु जल संधि: भारत की वापसी का कारण और इसके प्रभाव
भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हस्ताक्षरित सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) दशकों से दोनों देशों के बीच जल संसाधनों के बंटवारे का आधार रही है। हालांकि, हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत ने इस संधि को निलंबित करने का निर्णय लिया है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया है।
सिंधु जल संधि क्या है?
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच एक जल वितरण समझौता है, जिसे 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षरित किया था। इस संधि के तहत, भारत को तीन पूर्वी नदियों—रावी, ब्यास और सतलुज—का पूर्ण नियंत्रण प्राप्त हुआ, जबकि पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों—सिंधु, झेलम और चिनाब—का नियंत्रण मिला। इस संधि ने दोनों देशों के बीच जल विवादों को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भारत द्वारा संधि को निलंबित करने का कारण
23 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए एक आतंकवादी हमले में 26 पर्यटकों की मौत हो गई, जिसमें 24 भारतीय, एक नेपाली और एक स्थानीय गाइड शामिल थे। इस हमले की जिम्मेदारी ‘कश्मीर रेजिस्टेंस’ नामक एक नए आतंकवादी समूह ने ली है। भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहराया है, हालांकि पाकिस्तान ने किसी भी संलिप्तता से इनकार किया है।
इस हमले के जवाब में, भारत ने पाकिस्तान के साथ अपने राजनयिक संबंधों को घटाया, वाघा-अटारी सीमा को बंद किया, पाकिस्तानी राजनयिकों को निष्कासित किया और सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया। भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद का समर्थन करना बंद नहीं करता, तब तक यह संधि निलंबित रहेगी।
भारत की चिंताएं और संधि की समीक्षा की मांग
भारत ने अगस्त 2024 में पाकिस्तान को संधि की समीक्षा और संशोधन के लिए औपचारिक नोटिस दिया था। भारत की प्रमुख चिंताएं निम्नलिखित हैं:
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जनसंख्या और कृषि आवश्यकताएं: भारत की बढ़ती जनसंख्या और कृषि जरूरतों के मद्देनजर जल संसाधनों की मांग बढ़ रही है।
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स्वच्छ ऊर्जा का विकास: भारत स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जलविद्युत परियोजनाओं जैसे किशनगंगा और रतले को विकसित करना चाहता है, लेकिन पाकिस्तान इन परियोजनाओं में बाधा डाल रहा है।
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सीमा पार आतंकवाद: पाकिस्तान से प्रायोजित आतंकवादी गतिविधियों के कारण संधि का सुचारू कार्यान्वयन बाधित हो रहा है।
भारत का मानना है कि इन परिस्थितियों में संधि की समीक्षा आवश्यक है।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
पाकिस्तान ने भारत के इस कदम की निंदा की है और कहा है कि सिंधु जल संधि को एकतरफा रूप से समाप्त नहीं किया जा सकता। पाकिस्तानी विदेश कार्यालय ने कहा है कि संधि के अनुच्छेद XII (3) के तहत, संधि में कोई भी संशोधन दोनों देशों की सहमति से ही संभव है। पाकिस्तान ने यह भी चेतावनी दी है कि यदि भारत संधि का उल्लंघन करता है, तो इसे ‘युद्ध का कार्य’ माना जाएगा।
संभावित प्रभाव
सिंधु जल संधि का निलंबन भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है। पाकिस्तान की कृषि और जल आपूर्ति इस संधि पर निर्भर है, और इसके निलंबन से पाकिस्तान में जल संकट उत्पन्न हो सकता है। इसके अलावा, यह कदम दोनों देशों के बीच पहले से ही तनावपूर्ण संबंधों को और खराब कर सकता है।
भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करने का पाकिस्तान पर कई स्तरों पर असर पड़ सकता है
1. जल आपूर्ति पर प्रतिकूल प्रभाव
पाकिस्तान की सिंचाई प्रणाली मुख्यतः सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों पर निर्भर करती है। यदि भारत इन नदियों के प्रवाह को रोकने या मोड़ने का प्रयास करता है, तो:
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कृषि संकट: पाकिस्तान के पंजाब और सिंध जैसे क्षेत्रों में जल की भारी कमी हो सकती है, जिससे गेहूं, कपास और चावल जैसी फसलों की पैदावार प्रभावित होगी।
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पेयजल संकट: शहरी और ग्रामीण इलाकों में पीने के पानी की किल्लत बढ़ सकती है।
2. आर्थिक प्रभाव
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कृषि अर्थव्यवस्था को झटका: पाकिस्तान की 70% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। जल संकट से खाद्य उत्पादन घटेगा, जिससे महंगाई बढ़ेगी।
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बिजली उत्पादन में गिरावट: सिंधु नदी पर आधारित हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स को पानी की कमी से नुकसान होगा, जिससे लोड शेडिंग और बिजली संकट गहरा सकता है।
3. आंतरिक अस्थिरता और सामाजिक असंतोष
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जल की कमी के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में किसान आंदोलन और विरोध-प्रदर्शन हो सकते हैं।
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इससे सरकार पर दबाव बढ़ेगा और राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बन सकता है।
4. राजनयिक और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव
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पाकिस्तान इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश करेगा, जिससे भारत-पाक संबंध और तनावपूर्ण हो सकते हैं।
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यदि भारत वास्तव में पानी रोकता है, तो पाकिस्तान इसे “आक्रामक कूटनीति” और “युद्ध की कार्यवाही” के रूप में प्रचारित कर सकता है।
5. जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय प्रभाव
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जलवायु परिवर्तन के चलते पहले ही हिमालयी ग्लेशियरों का पिघलना और अनिश्चित वर्षा प्रणाली पाकिस्तान के लिए खतरा बनी हुई है। भारत की ओर से पानी पर नियंत्रण इस स्थिति को और खराब कर सकता है।
निष्कर्ष
सिंधु जल संधि दशकों से भारत और पाकिस्तान के बीच जल संसाधनों के बंटवारे का आधार रही है। हालांकि, हालिया घटनाओं के मद्देनजर भारत ने इसे निलंबित कर दिया है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया है। भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करने का पाकिस्तान पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है। यह न केवल जल संकट को जन्म देगा, बल्कि पाकिस्तान की आंतरिक स्थिरता और क्षेत्रीय कूटनीति को भी गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।