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Who is Indian Origin Woman Tulsi Gabbard: तुलसी गबार्ड अमेरिकी राजनीति में एक प्रमुख चेहरा हैं, जिन्होंने 2022 में डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ दी और स्वतंत्र नेता बन गईं. हाल ही में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उन्हें राष्ट्रीय खुफिया निदेशक के रूप में नामांकित किया है, जिससे अमेरिकी राजनीति में नई बहस छिड़ गई है. गबार्ड अमेरिकी सेना की एक पूर्व अधिकारी हैं और 2012 से 2021 तक अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की सदस्य भी रही हैं. वे अमेरिका में पहली हिंदू महिला कांग्रेस सदस्य बनीं और उन्होंने भगवद गीता पर हाथ रखकर शपथ ली थी.
सीनेट इंटेलिजेंस कमेटी ने तुलसी गबार्ड के नामांकन को 9-8 वोटों से स्वीकृति दी, लेकिन इस फैसले पर कई सवाल उठे हैं. कई लोगों का मानना है कि उनमें अनुभव की कमी है, क्योंकि उन्होंने किसी भी महत्वपूर्ण खुफिया एजेंसी में पूर्व में काम नहीं किया है.
इसके अलावा डेमोक्रेट्स और कुछ रिपब्लिकन नेताओं ने उनके चयन पर संदेह जताया है. इससे पहले उन पर ये आरोप भी लग चुका है कि वो साल 2019 में व्लादिमीर पुतिन के पक्ष में थीं. हालांकि, अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सीनेट उनके नामांकन को अंतिम रूप देती है या नहीं.
तुलसी गबार्ड की राजनीतिक यात्रा
तुलसी गबार्ड का जन्म अमेरिकी समोआ में हुआ था और वे हवाई में पली-बढ़ीं. उनके परिवार की धार्मिक पृष्ठभूमि हिंदू धर्म से जुड़ी हुई है. वे भगवद गीता को अपना मार्गदर्शक मानती हैं. तुलसी गबार्ड सबसे पहले साल 2002 में 21 साल की उम्र में हवाई की प्रतिनिधि सभा में चुनी गईं. इसके बाद वो साल 2004-2005 में इराक में अमेरिकी सेना के साथ तैनात रहीं. 2012 में डेमोक्रेटिक पार्टी के भीतर बेर्नी सैंडर्स का समर्थन कर सुर्खियों में आईं.
4 साल बाद यानी 2016 में डेमोक्रेटिक पार्टी के भीतर बेर्नी सैंडर्स का समर्थन कर सुर्खियों में आईं. साल 2020 में डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल हुईं लेकिन बाद में बाहर हो गईं. साल 2022 में डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ दी. गबार्ड का राजनीतिक करियर हमेशा विवादों और साहसिक निर्णयों से भरा रहा है.
डोनाल्ड ट्रंप और तुलसी गबार्ड का संबंध
तुलसी गबार्ड ने 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप के लिए समर्थन व्यक्त किया और उनकी बहस की तैयारी में भी मदद की. यह देखकर राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप के लिए उनका नामांकन एक रणनीतिक कदम हो सकता है. गबार्ड ने अमेरिकी विदेश नीति पर कई बार अपनी असहमति जताई है और कहा है कि मध्य पूर्व में अमेरिका के युद्धों ने देश की सुरक्षा को खतरे में डाला है. यह विचारधारा ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” नीति से मेल खाती है.
क्या गबार्ड के हिंदू धर्म और भारतीय मूल से कोई प्रभाव पड़ा?
तुलसी गबार्ड ने हमेशा अपनी हिंदू पहचान को गर्व से अपनाया है. वे भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हिंदू धर्म से जुड़े आयोजनों में शामिल होती रही हैं. 2014 में, उन्होंने मोदी से मुलाकात की थी और भारतीय राजनीति में भी उन्हें समर्थन मिला था. हालांकि, अमेरिकी राजनीति में धर्म को लेकर अक्सर विवाद होते रहे हैं, लेकिन गबार्ड ने इसे कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया.
भविष्य की संभावनाएं
यदि गबार्ड का नामांकन सीनेट से पारित हो जाता है, तो वे अमेरिका की सभी 18 खुफिया एजेंसियों की प्रमुख बन जाएंगी. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या उनके नेतृत्व में अमेरिकी खुफिया तंत्र में कोई बड़ा बदलाव आता है. हालांकि, उनकी आलोचना करने वालों का कहना है कि उनके पास इस पद के लिए जरूरी अनुभव नहीं है और यह फैसला राजनीतिक कारणों से लिया गया है. तुलसी गबार्ड का डोनाल्ड ट्रंप द्वारा राष्ट्रीय खुफिया निदेशक के रूप में नामांकन अमेरिकी राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है. उनके राजनीतिक सफर, हिंदू पहचान और विदेश नीति पर विचारों के कारण यह मामला और भी दिलचस्प हो जाता है.
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